Thursday, March 14, 2013

Music Director 'Naushad Ali'

                                               
मशहूर फिल्म संगीतकार नौशाद का जन्म लखनऊ में साल 1919 में हुआ था... बचपन से ही नौशाद को संगीत का शौक रहा... नौशाद को बचपन में उनका परिवार बाराबंकी के देवा शरीफ ले जाया करता था... वहीं नौशाद ने कव्वालों और हिन्दुस्तानी संगीतकारों को गाते हुए सुना... वहीं से संगीत का बीज नौशाद के मन में अंकुरित हो गया... और वहीं उन्होंने संगीत सीखना शुरु किया... हरमोनियम को दुरुस्त करना सीखा... साथ ही साथ वो लखनऊ के रॉयल थिएटर मेँ फिल्में देखने जाया करते थे... उस वक्त मूक फिल्मों का प्रचलन था... मूक फिल्में जब बड़ी बनने लगीं तो फिल्म के बीच में बोरियत न हो इसके लिए थियेटर मालिक गाने बजाने वालों को बुलाते थे जिन्हें पहले उन्हें फिल्में दिखाईं जाती थी और उन फिल्मों के हिसाब से उन्हें संगीत तैयार करना होता... ये संगीत सुनने के लिए नौशाद सिनेमा थियेटर जाया करते थे... और इसी ग्रुप में नौशाद शामिल हो गये और संगीत सीखने लगे... नौशाद के घरवालों को नौशाद की ये बात अच्छी नहीं लगी और एक दिन नौशाद के पिता ने उन्हें चेतावनी दी कि वो संगीत छोड़ दें या फिर घर से निकल जाएं... नौशाद ने घर छोड़ दिया और मुंबई आ गए अपनी किस्मत आज़माने के लिए साल 1937 में... मुंबई आने के बाद नौशाद को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा शुरुआत में वो अपने किसी परिचित के यहां रहने लगे लेकिन कुछ दिन के बाद उन्हें आसरा छोड़ना पड़ा और मजबूरी में उन्हें ब्रॉडवे थियेटर के सामने फुटपाथ पर भी सोना पड़ा... इसके बाद उस्ताद झंडे खां के असिस्टेंट के तौर पर 40 रुपये प्रति माह की नौकरी पर गुज़ारा शुरु हुआ... हालांकि पहली फिल्म एक रशियन डायरेक्टर के साथ करनी थी लेकिन किन्ही वजहों से वो फिल्म रिलीज़ नहीं हो सकी। इसके बाद नौशाद ने एक ऑर्केस्ट्रा में प्यानो बजाने का काम किया... जो कि ज़्यादा दिनों तक नहीं चला... इसके बाद संगीतकार खेमचंद प्रकाश ने उन्हें अपनी फिल्म में असिस्टेंट के तौर पर लिया... वो फिल्म थी कंचन जिसके लिए नौशाद को 60 रुपया प्रति माह का वेतन मिलने लगा... नौशाद फिल्म इंडस्ट्री में संगीतकार खेमचंद प्रकाश को अपना गुरु मानते थे... साल 1939 में नौशाद ने एक पंजाबी फिल्म मिर्ज़ा साहिब में असिस्टेंट म्यूज़िक डायरेक्टर का काम किया... नौशाद को पहला सिंगल ब्रेक मिला साल 1940 में आई फिल्म प्रेम नगर से... इसके बाद साल 1942 में आई फिल्म नई दुनिया जिसके लिए पहली बार नौशाद को म्यूज़िक डायरेक्टर का क्रेडिट दिया गया... साल 1944 में आई फिल्म रतन के बाद नौशाद को बड़ी सफलता मिली और संगीतकार नौशाद को एक फिल्म के लिये 25 हज़ार रुपये की फीस मिली... संगीतकार नौशाद के बारे में एक किस्सा काफी मशहूर है... नौशाद फिल्मों में संगीत देने लगे थे.. घरवालों की मर्जी के खिलाफ वो ये काम कर रहे थे... शादी के लिए उनके घरवाले लगातार उनपर दबाव बना रहे थे... नौशाद राजी हो गये... लेकिन घरवालों के सामने एक मुश्किल आ खड़ी हुई... वो वक्त था जब साल 1944 में फिल्म रतन से नौशाद को पहली सफलता मिली थी... फिल्म इंडस्ट्री आम जनता की नज़र में बदनाम थी और उसमें काम करने वालों को भी भली नज़रों से नहीं देखा जाता था... नौशाद के परिवार वालों ने लड़की के घरवालों को बताया कि नौशाद पेशे से दर्ज़ी (टेलर) हैं... लड़की के घरवाले शादी के लिए राज़ी हो गये... और जिस दिन शादी थी उस दिन बैंड वाले रतन फिल्म का वही गाना बजा रहे थे जिस गाने से नौशाद को पहचान मिली थी...  ओ जाने वाले बालमवा लौट के आ लौट के आ’... साल 1982 में नौशाद  को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड ने नवाज़ा गया था... और साल 1992 में पद्न भूषण अवॉर्ड से नवाज़ा गया... नौशाद ने अपने पूरे करियर में 100 से कम फिल्मों में संगीत दिया लेकिन उनकी आधी से ज़्यादा फिल्मों को सुपरहिट का दर्जा हासिल है
               
साल 1957 में आई फिल्म मदर इंडिया का संगीत नौशाद साहब ने ही दिया था। मदर इंडिया वो पहली फिल्म है जिसे पहली बार भारत की ओर से ऑस्कर में नामांकित करने के लिये चुना गया... नौशाद की आखिरी फिल्म साल 2005 में आई फिल्म ताज महल थी... जिसमें 86 साल की उम्र में नौशाद ने संगीत दिया... 5 मई 2006 को संगीतकार नौशाद अली ने दुनिया को अलविदा कह दिया...
                   

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