भारत में फिल्मों की शुरुआत हुई साल 1913 में जब देश में पहली बार दादा साहब फाल्के ने 'राजा हरिश्चन्द्र' फिल्म बनाई... दादा साहब फालके का पूरा नाम धुंडीराज गोविंद फालके था... लंदन में ईसा मसीह पर आधारित एक फिल्म को देखने के बाद से ही दादा साहेब फाल्के के मन में फिल्म बनाने की चाहत पल रही थी... काफी वक्त के इंतज़ार और फिल्म बनाने के जज़्बे को कायम रखते हुए दादा साहब ने फिल्म बनाने की शुरुआत की... इस फिल्म को बनाने के लिए उन्हें कई मुश्किलों से रुबरु होना पड़ा... लेकिन फिल्म निर्माण के प्रति अपनी रुचि पर उन्होंने मुश्किलों को हावी नहीं होने दिया और आखिरकार इस फिल्म को बनाने में कामयाबी हासिल की...
इस फिल्म का निर्माण दादा साहब के लिए आसान काम नहीं था... और उनके इस सपने को पूरा करने के लिए उनकी पत्नि सरस्वती बाई फालके ने उनका पूरा साथ दिया... आपको ये जानकर हैरानी होगी कि फिल्म को बनाने के दौरान सरस्वती बाई फिल्म के सभी सदस्यों के लिए खाना पकाती थीं... साथ ही साथ वो सभी आर्टिस्ट्स के कपड़े धोने से लेकर उनकी रोज़मर्रा की ज़रूरतों का ध्यान रखती थीं... उस वक्त क्रू में लगभग 500 लोग शामिल थे... जिनके रोज़ के खाने की ज़िम्मेदारी उन्हीं की हुआ करती थी... इसके अलावा वो फिल्म के पोस्टर और प्रोडक्शन के काम में उनकी मदद करती थीं... फिल्म का प्रीमियर मुंबई के 'ओलंपिया थियेटर' में मुंबई की बड़ी हस्तियों और अखबारों के संपादकों के बीच अप्रैल 1913 में किया गया था... जबकि ये फिल्म 3 मई 1913 को आम जनता के लिए पर्दे पर उतारी गई और इसका पहला शो 'कोरोनेशन सिनेमा' गिरगांव में किया गया... इस फिल्म को बनाने के बाद दादा साहब फाल्के ने इसके और प्रिंट्स तैयार किये जिन्हें छोटे-छोटे कस्बों में भी जाकर दिखाया गया... दादा साहब फाल्के जब फिल्म का निर्माण कर रहे थे उस वक्त लोग रंगमंच या सिनेमा में काम करना गलत माना करते थे... इसलिये दादा साहेब ने फिल्म में काम करने वालों से कहा था कि कोई अगर पूछे कि वो क्या करते हैं तो उन्हें बताएं कि ये हरिश्चंद्र नाम की फैक्ट्री है जिसमें वो काम करते हैं... दादा साहेब फालके पेंटर राजा रवि वर्मा से खासे प्रेरित थे... जब राजा रवि वर्मा ने राजा हरिश्चंद्र की पेंटिंग्स बनाई तो दादा साहेब ने उसे चलचित्र या जिसे हम सिनेमा कहते हैं... उसके ज़रिए लोगों तक पहुंचाने की योजना बनाई...
उस दौर में महिलाएं रंगमंच या थियेटर में काम करने को राज़ी नहीं होती थी... इस वजह से पुरुष और महिला किरदार दोनों पुरुष कलाकार को निभाने होते थे... दादा साहेब ने काफी कोशिश की कि वो किसी महिला को फिल्म में काम करने के लिए राज़ी नहीं कर सकें और अंत में सालुके जी को हरिश्चंद्र की पत्नी रानी तारामति की भूमिका निभानी पड़ी... सालुके एक होटल में खाना बनाने का काम करते थे... और उन्हें महिला की भूमिका निभाने के लिए दादा साहेब ने राज़ी किया था... इस फिल्म की रील की कुल लंबाई 3700 फिट थी और ये 40 मिनट की फिल्म थी... इस फिल्म का निर्देशन खुद 'दादा साहेब फाल्के' ने किया था... जबकि फिल्म की कहानी 'रणछोड़ भाई उद्याराम' ने लिखी थी... जबकि सिनेमेटोग्राफी 'त्रियंबक बी. तेलंग' की थी....
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