मूक फिल्मों के बाद बोलती फिल्मों के चलन की शुरुआत हुई फिल्म आलम आरा से... 'ख़ान बहादुर अर्दशीर ईरानी' की फिल्म 'आलम आरा' एक राजकुमार और एक गरीब लड़की की प्रेमकहानी पर आधारित थी... इस फिल्म में प्रमुख किरदार निभाए थे मास्टर विट्ठल, ज़ुबैदा और पृथ्वीराज कपूर ने... ये फिल्म बंबई(मुंबई) के मैजेस्टिक सिनेमा हॉल में 14 मार्च 1931 को रिलीज़ की गई... बोलती फिल्म को देखने के लिए लोगों की इतनी भीड़ इकट्ठा हो गई कि फिल्म की रिलीज़ के दिन पुलिस को भीड़ पर काबू पाने की नौबत आ गई थी... ये फिल्म 124 मिनट की थी...
ये फिल्म साल 1929 में आई अंग्रेज़ी फिल्म 'शो बोट' से प्ररित थी... और इस फिल्म में पहली बार साउंड का इस्तेमाल किया गया और फिल्म में इस्तेमाल किये गये कैमरे में ये खूबी थी कि शूटिंग के दौरान साउंड सीधे रील पर रिकॉर्ड होने लगा... इस फिल्म की रिकॉर्डिंग में 'टनर सिंगल सिस्टम' कैमरे का इस्तेमाल किया गया... 'दे दे खुदा के नाम पर' इस फिल्म में एक गाना था जिसे 'वज़ीर मोहम्मद खान' ने गाया था... इस गाने को हिंदी फिल्म इतिहास का पहला गाना कहा जाता है... उस वक्त ज़्यादा साजो सामान नहीं था लिहाज़ा ये गाना सिर्फ एक हरमोनियम और तबले की मदद से इसे रिकॉर्ड किया गया था... उस दौरान फिल्मों में उन्हीं लोगों को लिया जाता था जो अभिनय करने के साथ साथ गा भी सकते थे... और फिल्मों में गानों की संख्या काफी ज़्यादा होती थी...
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