Monday, March 18, 2013

Balraj Sahni

                                               
बलराज साहनी के नाम से आप सभी अच्छे से वाकिफ़ होंगे। जी हां, वही बलराज साहनी जिन्हें आपने वक्त फिल्म में ऐ मेरी ज़ोहरे ज़बी गाते ज़रुर देखा होगा। बलराज साहनी का असली नाम युधिष्ठिर साहनी था। बलराज का जन्म पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हुआ था। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि प्रसिद्ध लेखक भीष्म साहनी बलराज साहनी के भाई थे। बलराज की सारी पढ़ाई लिखाई लाहौर में हुई थी। अंग्रेजी में अपनी पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद बलराज रावलपिंडी आ गए जहां उन्होंने अपने पारिवारिक व्यवसाय में हाथ बंटाना शुरु कर दिया। अंगेजी में डीग्री खत्म करने के बाद दमयंति नाम की महिला से बलराज की शादी हो गई। 1930 में बलराज साहनी ने रावलपिंडी छोड़ दिया और बंगाल में अंग्रेज़ी औऱ हिंदी विषय के प्रोफेसर पद पर कार्य करने लगे। यहीं पर बेटे परिक्षित साहनी का जन्म हुआ। परिक्षित साहनी को आपने कई छोटी बड़ी भूमिकाओं में कई फिल्मों में अक्सर देखा होगा, जैसे कि लगे रहो मुन्ना भाई और 3 ईडीयट्स। जिस वक्त परिक्षित का जन्म हुआ, उनकी मां दमयंति स्नातक की पढ़ाई कर रही थीं। बलराज साहनी ने एक साल तक गांधी जी के साथ भी काम किया। जिसके बाद गांधी जी का आशिर्वाद लेकर साहनी 1938 में लंदन चले गए और वहां बीबीसी हिंदी सेवा में रेडियो उद्घोषक यानि कि एनाउंसर का काम करने लगे। साल 1943 में बलराज वहां से वापस हिंदुस्तान लौट आए। स्वदेश लौटने के बाद बलराज इप्टा के साथ जुड़े, उन्होंने फिल्मी करियर की शुरुआत साल 1946 में फिल्म इंसाफ से की।
                 
बलराज की पत्नी दमयंति की साल 1947 में मौत हो गई थी, लेकिन बलराज साहनी ने फिल्मों का अपना सफर जारी रखा। साल 1953 में आई फिल्म दो बीघा ज़मीन से बलराज की पहचान बनी, औऱ इस फिल्म ने कांस फिल्म फेस्टिवल में कई पुरस्कार भी जीते। 1961 में बनी फिल्म काबुलीवाला में बलराज ने मुख्य भूमिका अदा की। बलराज साहनी ने यूं तो कई हिरोइंस के साथ काम किया, साल 1965 में आई फिल्म वक्त में बलराज मुख्य भूमिका में तो थे ही, अचला सचदेव के साथ गाए गए गीत ऐ मेरी ज़ोहरे ज़बी ने फिल्म इंडस्ट्री में धूम मचा दी। बेहद कम लोग ये जानते हैं कि बलराज साहनी ने कुछ किताबें भी लिखीं। जैसे की मेरी पाकिस्तान यात्रा और मेरा रूसी सफ़रनामा। साल 1951 में आई फिल्म बाज़ी के लेखक बलराज साहनी ही थे। फिल्म बाज़ी का निर्देशन गुरुदत्त ने किया था जबकि देव आनंद मुख्य भूमिका में थे। साल 1969 में बलराज साहनी को पद्मश्री सम्मान से भी नवाज़ा गया। बलराज पूरी फिल्म इंडस्ट्री के चहेते थे। अपने पूरे करियर में बलराज किसी भी कॉन्ट्रोवर्सी में नहीं फंसे। छोटी बेटी शबनम की अचानक मौत ने बलराज को बेहद कमज़ोर कर दिया था। आखिर 13 अप्रैल 1973 को बलराज ने अंतिम सांस ली। पूरी फिल्म इंडस्ट्री बलराज को हमेशा याद रखेगी।

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