
गुरुदत्त का असल नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था। उनका जन्म 9 जुलाई साल 1925 में बैंगलूरू में हुआ था। गुरुदत्त के पिता स्कूल में हैडमास्टर के पद पर थे हालांकि बाद में वो बैंक में काम करने लगे। गुरुदत्त में कलात्मक गुण आए तो वो आए अपनी मां के ज़रिये, गुरुदत्त की मां का नाम वासंति पादुकोण था, यूं तो वो सिर्फ एक गृहणी थीं लेकिन कुछ वक्त के बाद उन्होंने स्कूल में पढ़ाना शुरु किया। धीरे धीरे उन्होंने लेखन का कार्य शुरु किया और कहानियां लिखने लगीं। उन्होंने कुछ बंगाली उपन्यासों का अनुवाद भी किया। आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस वक्त गुरुदत्त का जन्म हुआ उनकी मां की उम्र सिर्फ 16 साल थी। गुरुदत्त का बचपन काफी मुश्किलों भरा रहा, अपने पारिवारिक विवादों के चलते उन्हें काफी मुश्किलें झेलनी पड़ीं। कुछ दिनों बाद अपने तीन भाईयों और एक बहन के साथ वो बंगाल में आकर बस गए। बंगाल में रहने के बाद उन्होंने बंगाली नाम भी ग्रहण कर लिया और लोग उन्हें गुरुदत्त के नाम से जानने लगे। गुरुदत्त ने कोलकाता आकर अपने मामा बालकृष्ण बेनेगल के साथ काफी वक्त बिताया। आपको ये जानकर भी हैरानी होगी कि बालकृष्ण बेनेगल मशहूर फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल के चाचा थे, जो कि एक पेंटर थे औऱ फिल्मों के पोस्टर्स डिज़ाइन किया करते थे। घर में आर्थिक मुश्किलों के चलते गुरुदत्त ज़्यादा पढ़ाई नहीं कर सके। लेकिन उन्होंने कला का दामन नहीं छोड़ा और वो अल्मोडा के उदय शंकर ट्रूप के साथ शामिल हो गये। यहां उन्होंने डांस की ट्रेनिंग ली और काफी वक्त इस ग्रुप के साथ बिताया। गुरुदत्त साल 1941 में इस संस्था से जुड़े थे तब उन्हें 75 रुपये प्रति माह की 5 सालो के लिए स्कॉलरशिप मिली लेकिन साल 1944 में दूसरे विश्व युद्ध के चलते इस संस्था को ही बंद कर देना पड़ा। अब गुरुदत्त बेरोज़गार थे, वो वापस कोलकाता आ गये। यहां उन्होंने लीवर ब्रदर्स की फैक्ट्री में टेलीफोन ऑपरेटर का काम शुरु किया लेकिन इस कलाकार का ज़्यादा दिन इस काम में उनका मन नहीं लगा और वो पुणे चले आए। अपने मामा के ज़रिये उन्हें प्रभात फिल्म कंपनी में 3 साल का कांट्रैक्ट मिल गया, यहां उनकी मुलाकात वी शांताराम से हुई। वी शांताराम उनकी प्रतिभा देख चुके थे, और उन्होंने तभी ‘कला मंदिर’ की स्थापना भी की थी। यहीं गुरुदत्त की मुलाकात देव आनंद और रहमान जी से हुई और यहीं से उनकी दोस्ती की शुरुआत भी हुई। गुरुदत्त इसके बाद साल 1947 तक प्रभात फिल्म कंपनी के सीईओ बाबूराव पई के असिस्टेंट भी रहे। इस बीच तकरीबन 8 महीने तक बेरोज़गार रहने के दौरान उन्होंने अंग्रेजी में लिखना शुरु किया और मुंबई की साप्ताहिक अंग्रेजी पत्रिका में लिखा। उन्होंने अपने जीवन पर ही आधारित कहानी लिखी जिसे ‘प्यासा’ फिल्म के तौर पर पर्दे पर उतारा गया। माना जाता है कि ये फिल्म गुरुदत्त के जीवन पर ही आधारित थी। पहले इस फिल्म का नाम ‘कश्मकश’ रखा गया था जिसे बाद में बदल कर ‘प्यासा’ कर दिया गया।

क्या आप जानते हैं कि गुरुदत्त का फिल्मों में पदार्पण कोरियोग्राफर यानि की डांस डायरेक्टर के तौर पर हुआ था। हालांकि वो निर्देशक बनना चाहते थे। खैर देव आनंद के साथ गुरुदत्त की पहली मुलाकात का किस्सा भी काफी रोचक है, देव साहब अपनी फिल्म हम एक हैं कि शूटिंग कर रहे थे अचानक सेट पर उन्होंने देखा कि उनकी शर्ट गायब है, थोड़ी तलाश के बाद उन्होंने देखा कि फिल्म के कोरियोग्राफर साहब उनकी शर्ट पहने हुए हैं। टोकने पर उन जनाब ने माना कि दूसरी शर्ट नहीं होने के चलते उन्होंने ये शर्ट पहन ली। यहीं से देव आनंद और गुरुदत्त की दोस्ती की शुरुआत हुई। चूंकि देव आनंद भी उस वक्त ज़्यादा बड़े स्टार नहीं थे और न हि गुरुदत्त, तो यहां पर दोनों दोस्तों ने तय किया कि अगर देव आनंद का पहले सफलता मिली तो वो गुरुदत्त को ब्रेक देंगे और अगर गुरुदत्त को पहले सफलता मिली तो वो देव साहब को। देव आनंद ने अपना वादा निभाया और अपने प्रोडक्शन ‘नव केतन’ की पहली फिल्म ‘बाज़ी’ में गुरुदत्त को निर्देशक के तौर पर ब्रेक दिया। हालांकि बाद में गुरुदत्त और देव आनंद के बड़े भाई चेतन आनंद में कुछ तकरार हो गई जिसके बाद इन दोनों की दोस्ती में थोड़ी दरार आ गई। गुरुदत्त ने अपना वादा निभाया और देव आनंद के साथ फिल्म ‘सीआईडी’ बनाई, हालांकि रिश्तों में तल्खी की वजह से गुरुदत्त ने फिल्म का निर्देशन नहीं किया और उनके असिस्टेंट राज खोसला फिल्म के निर्देशक बने।

इस फिल्म की खास बात ये भी है कि फिल्म में ज़ोहरा सहगल को भी ब्रेक मिला और वो इस फिल्म की कोरियोग्राफर बनीं। ज़ोहरा सहगल गुरुदत्त के साथ अल्मोड़ा में उदय शंकर ग्रूप का हिस्सा थी जहां वो पहली बार गुरुदत्त से मिलीं थीं। इसके बाद गुरुदत्त ने कई फिल्मों का निर्माण किया जिसमें ‘कागज़ के फूल’ और ‘चौदवीं का चांद’ काफी सफल रहीं। गुरुदत्त की प्रोडक्शन की आखिरी फिल्म थी ‘सांझ और सवेरा’ जिसका निर्देशन ऋषिकेश मुखर्जी ने किया था। इस फिल्म का सफलता भी मिली लेकिन गुरुदत्त की ये आखिरी फिल्म बनीं। गुरुदत्त की मौत पर भी काफी सवाल खड़े हुए। एक दिन गुरुदत्त अपने बिस्तर पर मृत पाये गये। मेडिकल रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ कि उन्होंने शराब के साथ नींद की गोलियां मिलाकर खा लीं थी। कुछ लोग इसे आत्महत्या मानते हैं क्योंकी गुरुदत्त पहले भी दो बार आत्महत्या की कोशिश कर चुके थे। लेकिन उनके सुपुत्र मानते हैं कि ये सिर्फ एक एक्सिडेंट था क्योंकी नींद की गोलियां वो अक्सर नींद नहीं आने पर खाया करते थे। अचानक हुई उनकी मौत से पूरी फिल्म इंडस्ट्री को झटका लगा था।